ये कैसी कैफियत ताबिश हुई है।

सुना है वो भी कुछ दानिश हुई है।।  

मुझे लगता है वो आये हुए हैं

मेरे तकिये में कुछ जुम्बिश  हुयी है।।

ख़ुशी है या तुम्हारे ग़म के आंसू

हमारे  शहर में  बारिश हुई है।।

ख़ुदा दो दिन की मोहलत और दे दे

के उनसे मिलने की ख़्वाहिश हुयी है।।

मेरे तुर्बत में खिड़की भी नहीं है

मुझे लगता है कुछ साज़िश हुयी है।।


सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है