फूल क्या सारा चमन था उसमें।

एक मरमर सा बदन था उसमें।।


इश्क़ वालों पे छलक पड़ता था

हुस्न क्या ज़ाम-ए-कुहन था उसमें।।


बेवफ़ाओं की तरह सोया है

क्या मुहब्बत का रहन था उसमें।।


था तो बिन्दास तबीयत लेकिन

दर्द कोई तो दफ़न था उसमें।।


दिल की हसरत को दबा कर रख दे

यार इतना तो वज़न था उसमें।।


जिसकी नफ़रत का मैं शैदाई था

इश्क़ से मैं भी मगन था उसमें।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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