स्वप्न फिसलती रेत सरीखे

जीवन रिसती गागर।

तुम को ढूंढ़ लिया अब ख़ुद को 

कहाँ तलाशें जाकर।।


सब ने अपनी शर्तों पर की

मुझसे नातेदारी

जब तक मतलब रहा यार का

उतने दिन थी यारी


सब थे रिश्तों के व्यापारी

सब दिल के सौदागर।। 

स्वप्न फिसलती रेत.......


नेह रहा इस तन से उनका

जब तक रही जवानी

इसके आगे सम्बन्धों की

केवल खींचा तानी


दिल की दौलत बेहतर थी

या दौलत का दिल बेहतर ।।

स्वप्न फिसलती रेत सरीखे......


नैनों को समझाया लेकिन

दिल ने बात न मानी

उस ने  भरमाया मेरे

दिल ने भी की मनमानी


फूल बिछे कब मिले प्यार में

पाई पग पग ठोकर।।

स्वप्न फिसलती रेत ......


सुरेश साहनी, कानपुर

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