हम न ग़ालिब रहे न मीर हुए।

हम न तालिब न तो नसीर हुए।।


ताज वाले न थे न हो पाए

और अज़मत से कब फ़कीर हुए।।


बिन तेरे इक अजब सी गुरबत है

हम भले शाह के अमीर हुए।।


उन को दैरो-हरम से क्या मतलब 

जो तेरे इश्क़ के असीर हुए।।


हम न राँझा हुए न मजनू तो

तुम भी लैला बने न हीर हुए ।।


साहसी कब हुआ कोई नादिर

जितने रैदास या कबीर हुए।।


जन्म से मृत्यु का ये हासिल है

हम बिना प्राण के शरीर हुए।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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