आ भी जाओ दूरियां खलने लगी हैं।

अब हवायें गर्म सी चलने लगी हैं।।

सोएंगी कब तक  तमन्नाये भला

अब तो उठके आंख भी मलने लगी हैं।।

हम भी कब तक राह देखेंगे तेरी

चाहतें औरों से भी मिलने लगी हैं।।


Suresh Sahani

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