खाक़ो-गर्दो-गुबार में खुश हूँ।

हाँ मैं अपने मजार में खुश हूँ।।


जाके कूंचा-ए-यार में खुश था

आके अपने दयार में खुश हूँ।।


वो ये लुत्फे-ख़लिश न समझेगा

जबकि मैं इन्तिज़ार में खुश हूँ।।


वो मेरे प्यार को न समझेगा

मैं मगर उसके प्यार में खुश हूँ।।


इतनी फुरसत कहाँ कि रंज़ करूँ

बस गमें-रोजगार में खुश हूँ।।


वो नहीं है तो सब बियावां है

किसने बोला बहार में खुश हूँ।।


इब्ने-मरियम को कौन समझाए

मैं उसी के बुखार में खुश हूँ।।


ज़ुल्म को प्यार क्यों न हो जाता

मै जो सर देके दार में खुश हूँ।।


वो मेरे दिल से जा नहीं सकता

मैं इसी एतबार में खुश हूँ।। 


सुरेश साहनी ,कानपुर

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