नाहक चिंता बेकार फ़िकर।
चलना है जीवन ढर्रे पर।।
दिन भर भागे रातों जागे
हासिल आया बस एक सिफर।।
कैसे जीते हो तुम पर है
हँस कर काटो या रो रोकर।।
ऐ काश कि कुछ ले जा पाते
बांधी जो गठरी जीवन भर।।
हर पोथी से भारी निकले
वे प्यार भरे ढाई आखर।।
Suresh sahani
नाहक चिंता बेकार फ़िकर।
चलना है जीवन ढर्रे पर।।
दिन भर भागे रातों जागे
हासिल आया बस एक सिफर।।
कैसे जीते हो तुम पर है
हँस कर काटो या रो रोकर।।
ऐ काश कि कुछ ले जा पाते
बांधी जो गठरी जीवन भर।।
हर पोथी से भारी निकले
वे प्यार भरे ढाई आखर।।
Suresh sahani
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