इस विषपायी नीलकंठ को
कितनी बार हलाहल दोगे।
कब अपने हिस्से में आये
अमृतघट का प्रतिफल दोगे।।....
तुम जब भी संकट में आये
भोले त्राहिमाम चिल्लाये
निज हिस्से के कालकूट को
उनके खप्पर में भर आये
कब तक उस ध्यानस्थ रुद्र को
शहरों का कोलाहल दोगे।।....
शिव भोले हैं इसीलिए तुम
उनको सस्ते में निपटाते
नाग दुष्ट हैं आस्तीन के
इसीलिए तुम दूध पिलाते
शिव जैसे निश्छल रिश्तों को
कब तुम निज अन्तस्थल दोगे।।.....
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