मैं चन्दनवन सा शापित हूँ।
कोमल मन लेकर भावहीन
प्रस्तर ज्यूँ प्राण प्रतिष्ठित हूँ।।.....
मेरी शीतलता के कारण
मुझको खाण्डव सा जलना है
मेरी सुगन्ध के कारण ही
मुझको कांटों में पलना है
सज्जित हूँ यदि प्रासादों में
मत समझो मन से जीवित हूँ।। मैं...
ज्ञानी मस्तक पर लेपित हो
मैं जितना गर्वित होता हूँ
उतना ही अभिमानी ललाट-
पर चढ़कर लज्जित रहता हूँ
व्यसनी तन पर अभिलेपित
निज-आहुतियों से अवकुंठित हूँ।।मैं.....
मृगतृष्णाओं ने पग पग पर
पग में मरुथल पहनाए हैं
विषया विषयी इच्छाओं ने
तन पर विषधर लिपटाये हैं
जैसे बेजान खिलौना बन
औरों के हाथ नियंत्रित हूँ।।...
मैं चन्दनवन सा शापित हूँ.....
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