जीवन जितना रंगहीन था उतना ही रंगीन हो गया।
प्रेम तुम्हारा पाकर प्रियतम
याचक आज कुलीन हो गया।।
कल इन प्रेम कथाओं में तुम
साथ मेरे गाई जाओगी
सोहनी हीर राधिका जैसे
तुम भी दोहराई जाओगी
चार दिनों वाला यह जीवन
जैसे सर्वयुगीन हो गया।।
प्रेम उपजते ही जीवन मे
लाता है परिवर्तन कितने
प्रेम करा देता है जड़ से
भी क्षण भर में नर्तन कितने
अपने अंदर का उच्छ्रंखल
भी कितना शालीन हो गया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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