तेरी धड़कन सुनाई दे रही है।
मेरी दुनिया दिखाई दे रही है।।
तेरा बीमार होना ही शिफ़ा है
अभी नाहक़ दवाई दे रही है।।
मेरे पहलू में तेरी नफ़्स जैसे
मुहब्बत की रजाई दे रही है।।
खिले हैं फूल महकी हैं फिजायें
हमें कुदरत बधाई दे रही है।।
रूपहरी चांदनी भी माहरुख पर
बिखर कर मुंहदिखाई दे रही है।।
सुबह होने को है फिर एक हो लें
तमन्ना फिर दुहाई दे रही है।।
हमें लगता है हम तुम खो चुके हैं
ये हालत पारसाई दे रही है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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