कब न थे कब थे हमारी ज़िन्दगी के मायने।

आप कब समझे हमारी किस खुशी के मायने।।


मेरे जीते जी न समझा जो हमारे दर्द को

क्या समझता फिर हमारी खुदकुशी के मायने।।


हुस्न वालों को पता है हुस्न की रांनाईयाँ

इश्क़ वाले जानते हैं आशिक़ी के मायने।।


जिस ख़ुदा की राह में मरता रहा है आदमी

क्या पता है उस ख़ुदा को बन्दगी के मायने।।


हम से बेपर्दा हुआ जो क़ुर्बतों के नाम पर

वो हमें समझा रहा है पर्दगी के मायने।।


जो चरागों को बुझाने में हवा के साथ थे

क्या  बतायेंगे हमें वो रोशनी के मायने।।


कितनी दरियाओं का पानी पी रहा है रात दिन

इक समन्दर को पता है तिश्नगी के मायने।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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