छुप गए हो तो नज़ारों की तरह मत मिलना।

तुम मुझे चाँद सितारों की तरह मत मिलना।।


एक मुझसे न मिले तुम कभी अपने बनकर

मेरे अपनों से भी यारों की तरह मत मिलना।।


ग़म के गिर्दाब में जब छोड़ दिया है तुमने

डूबने पर भी किनारों की तरह मत मिलना।।


डोलियाँ खुशियों की जब लूट चुके हो मेरी

तब जनाज़े में कहारों की तरह मत मिलना।।


अब खिजाओं में भी  हम सीख गए हैं खिलना

अब जो मिलना तो बहारों की तरह मत मिलना।।


अब तुम्हें देख के भी दिल मे न होगी हरक़त

अर्श के टूटते तारों की तरह मत मिलना।।


जबकि साहिल न हुये कैफ़ में तुम कश्ती के

आज गिरते से कगारों की तरह मत मिलना।। 


 सुरेश साहनी कानपुर

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