जब तेरे इश्क़ ने मारा मुझको ।
कब दिया तूने सहारा मुझको।।
लौटना कैसे मुनासिब होता
और फिर किसने पुकारा मुझको।।
जबकि मल्लाह मेरा रहजन हो
कौन फिर देता किनारा मुझको।।
बारहा उजड़ी है दिल की बस्ती
बारहा मैंने संवारा मुझको।।
देवता बन के बिगड़ जाऊंगा
यूँ ही रहने दो ख़ुदारा मुझको।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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