सब कहते हैं कौन है ये क्या करता है।
उल जलूल या कुछ भी लिखता रहता है।।
घरवाली नाराज है पर चुपके चुपके
सखियों से कहती है अच्छा लगता है ।।
मेरे पाठक मुझपर जब कुछ लिखते है
हर्ष मुझे तब ज्ञानपीठ सा मिलता है।।
दिनकर या प्रसाद होना कुछ मुश्किल है
हाँ होने की कोशिश तो कर सकता है।।
बड़े बड़े बरगद दिल्ली में रहते है
उनकी छाया में कब कोई बढ़ता है।।
हम दिल्ली से दूर पड़े हैं अच्छा है
कम से कम हम जो हैं वह तो दिखता है।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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