एक व्यंग लेख 

जम्बूद्वीप के पंत प्रधान जी सप्ताह भर के लिए एक गुफा में समाधि ले चुके थे।किंचित वह आठ-आठ प्रहर कार्य और राष्ट्रीय निर्वाचन कार्यक्रमों में अनवरत सहभगिता से क्लांत हो चुके थे। यद्यपि समस्त परिणाम अपेक्षित ही आ रहे थे। उनके दलों की जीत तय थी। सरकारी संस्थान अपनी गति से लाभ लेते हुए डूब रहे थे।सरकार के सर से सरकारी नौकरियों का बोझ लगभग कम हो चला था।राष्ट्र रक्षा के लिए विनिवेश यज्ञ निर्विध्न चल रहा था।विदेशी निवेश के जो कार्य सन 47 से अवरुद्ध थे ,लगभग पुनः प्रारम्भ हो चुके थे। और देश मे संकुचित निजी क्षेत्र द्रुत गति से विस्तार पा रहा था।किंतु कहीं तो कोई ऐसी बात थी जिससे हमारे विश्वगुरु बनने के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न हो रही थी। एक सप्ताह के मौन ने कई रमणियों को ध्यानस्थ सन्त को सांसारिक बनाने हेतु उद्विग्न कर दिया था। कुछ सधवाएँ राष्ट्रघाट पर  अपने सुन्दर कैशराशियों की आहुति देने को आतुर थीं ।कुछ दूरदर्शी चित्रखींचक यंत्र समूहों के आगे प्रसन्न भाव से तांडव नृत्य प्रदर्शन में लग चुकी थीं। कई देवता इंद्र और स्वयं शिव नारद-रक्तबीजीय अवतारों से पंत प्रधान की क्षमताओं और गुणों के बखान स्तवन से विचलित हो चले थे । कई धूर्त अवधूत तो शिव को उलाहना देने में लग गए थे कि प्रभु! आप अपने भक्तों का ध्यान नहीं रखते हैं जो आपको नियमित जल आदि से अभिषेक करते हैं आप को उनका कल्याण करना चाहिए जबकि आप पूरे विश्व का कल्याण किये जाते हैं। यहां तक कि जो आपको जल से महरूम रखते हैं आपने वहां सोना बरसा रखा है। शिव भी आरोप सुनकर मौन हो गए । उन्हें लगा कि कहीं कुछ बोलने पर उन्हें मार्गदर्शक मंडल में ना डाल दिया जाए। और ठीक भी है उन्होंने अपने गणों की तरक्की देने की बजाय उन्हें आदिवासी बनाकर जंगलों में , नदी तालाबों किनारे छोड़ दिया था और कहीं असुरों कहीं देवों को कुछ न कुछ देकर उपकृत करते रहे थे।

खैर पंत भक्तों की साधना सफल हुई। वे ध्यान मुद्रा से बाहर आये और उन्होंने राजधानी हिंसा को कुछ देर से रोकने के लिए वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को लताड़ लगाई।उन्हें संतोष था कि पुलिस ने अपना कार्य तद्नुरूप किया था।उन्होंने तत्काल लोगों को इस बार सामूहिक सद्भावना होली मिलन जैसे कार्यक्रमो में नहीं शामिल होने की बात कहीं।उनके इस आह्वान से कोरोना वायरसों के आंसू निकल पड़े। चीन को भी अपने कदम पीछे खींचने पड़े।

पंत प्रधान जी ने जब कहा कि हिन्दू जैन सिख ईसाई समेत सभी सनातन धर्म और मानव मात्र एक समान हैं। मितरो मुझे पूरे देश को समान रूप से  एक सूत्र में पिरोना है। जमा धन देश की अर्थव्यवस्था को जाम करता है। अतः देश के विकास को गति देने के लिए धन जमा करने वाले वाले बैंकों को और बड़े लोन लेने वाले अपने देश से खदेड़ देना है।क्योंकि माया ही एकमात्र वह कारण है  कारण कोई गुरु नहीं बन सकता तो देश विश्वगुरु कहाँ से बनेगा। 

उनकी दिव्य मुद्रा से अभिभूत मेरी आँख अचानक खुल गयी जब मेरे बच्चे ने जोर से कहा पापा मुझे पिचकारी चाहिए। और मैं शेष दिव्यज्ञान से उसी तरह वंचित रह गया जैसे प्रदर्शनकारी मजदूर ज्ञापन देने से  वंचित रह जाते हैं।


सुरेश साहनी, कानपुर।

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