जब मैं कहता हूँ साम्यवाद भारतीय परिवेश में अप्रासंगिक है तो बुद्धिजीवी दिमाग लगाने लगते हैं।क्यों भाई मैं तो कम्युनिस्ट नहीं हूं।जब कम्युनिस्ट ही एक नहीं है तो आम जनता क्या करे।

 अरे भाई! वर्ग संघर्ष वहां सफल होगा जहां केवल पूंजी और श्रम के बीच संघर्ष हो।भारत मे जाति, धर्म,ऊंच नीच और जाने क्या क्या कारक हैं। भाई थोड़ा प्रैक्टिकल बनिये।अपनी लड़ाई सेकुलर पार्टियों के भरोसे क्यूँ छोड़ते हैं? बीते तीन दशकों का अध्ययन कीजिये।जब जातिवादी या व्यक्तिप्रधान पार्टियां,नई नवेली पार्टियां किसी राज्य की सारी सीट्स पर चुनाव लड़ती हैं,तब आप दस से बीस टिकट दे पाते हो।आपको अपने सिमटते जाने का एहसास क्यों नहीं हुआ।आप ने मामा की बन्दूक मजबूत करी।उसके सहारे फासीवाद से लड़ते रहे । लेकिन जहाँ सत्ता मिली वहाँ आप खुद फासीवादी होते रहे।आपकी इसी प्रवृत्ति से आपका जनाधार खिसकता रहा।आप को समझना चाहिए था।जनमत सड़क पर चिल्लाता है। यदि आप सत्ता से बाहर हैं तो केवल अतिआदर्शवाद के कारण।   शुद्ध वीतरागी ,औघड़,अनासक्त सन्यासी किसे पसन्द है।तुम मनमोहन और माणिक की ईमानदारी पर रीझते रहो। जनता को आसाराम और नित्यानन्द ही पसन्द है। आदर्श विचार  दस प्रतिशत लोग ही अपनाते हैं।तब अतिआदर्श कितनों को हजम होता? शायद एक प्रतिशत।इतना ही जनमत आज पूरे देश मे आपके साथ है।

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