घर देहरी आंगन ओसारा छूट गया।

धीरे  धीरे  कुनबा सारा  छूट गया ।।


गोली कंचे कौड़ी सीपी पत्थर तक

खुशियों का भरपूर पिटारा छूट गया।।


ढलता सूरज और कटारी का पानी

सिधरी चमकी साथ तुम्हारा छूट गया।।


वीथी पनघट गागर गोरी पनिहारिन 

नज़रों से क्या क्या नज़्ज़ारा छूट गया।।


टेरर ट्रैफिक टेरेस वाले कल्चर में

पगडंडी छूटी चौबारा छूट गया।।


छूट गया बाबा के घर का दूध दही

नाना के घर का हरकारा छूट गया।।


हर चूल्हे पर मां सी ममता छूट गयी

हर चौके में भाग हमारा छूट गया।।


सुरेश साहनी

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