क्या पत्थर से यारी रखते।
अपना ही दिल भारी रखते।।
हम पहले से नाजुक दिल हैं
क्यों कर इक बीमारी रखते।।
बेशक़ अपने दिल की हसरत
हम क़वारी की क़वारी रखते।।
उसने रिश्ते तोड़ लिये थे
हम भी कब तक ज़ारी रखते।।
आख़िर आ ही पहुँची यादें
कितना चारदीवारी रखते।।
तुम मिलते तो ज़ख़्म हृदय के
आगे बारी बारी रखते।।
दिल कोई जागीर नहीं है
जिस पर मनसबदारी रखते।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
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