हम महफ़िल में बेशक गीत सुनाते हैं।

पर हर गीत तुम्हारी ख़ातिर गाते हैं।।

मेरे  गीतों  को  सुनना  तनहाई में

महफ़िल में  अल्फ़ाज़  मेरे  शर्माते हैं।।

हम फलदारों की भी कैसी क़िस्मत  है

फल देते हैं फिर भी पत्थर खाते हैं।।

सफर इश्क़ का जब करना तन्हा करना

जज़्ब काफ़िलों में अक्सर लुट जाते हैं।।

अब भी जब तब बात तुम्हारी चलती है

अब भी हम उन यादों में खो जाते हैं।।

इन  नम आंखों पर संजीदा मत होना

हम अक्सर जज़्बातों में बह जाते हैं।।

सुरेशसाहनी

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