समय साथ लेकर चलता है यादों की बन्दूक।

फिर मन को देता रहता है समय समय पर हूक।।


टुकड़े टुकड़े दिन बीता करता है

तन घट शनैः शनैः रीता करता है

हम अपना सब साथ समय के हारे

समय साथ रहकर जीता करता है 


किरचे किरचे ख़्वाब बताते एक हमारी चूक।।


आज लब्धियाँ हैं केवल बचपन की

माँ के आंचल की पितु के आंगन की

हम उस क्षण को क्या भूलें क्या कोसें

जिस क्षण राह पकड़ ली थी यौवन की


उसी भूल ने आज हृदय के कर डाले सौ टूक।।

सुरेशसाहनी कानपुर

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