चाहते थे कि सिलसिला न रहे।

आ गए हैं उसे गिला न रहे।।

ग़म बहुत थे मगर न जाने क्यों

हम किसी ग़म में मुब्तिला न रहे।।SS

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है