महाभारत काल के निषाद भी आज के निषादों की तरह आपस में झूठे अहं में लड़े और राजसी वैभव से च्युत हुए।
मुझे लगता है कि निषादराज जिनमें स्वयं प्रभु श्री राम के ईश्वर स्वरूप को पहचानने की क्षमता थी।इसके साथ ही उनमें शकुन-अपशकुन विचारने की क्षमता थी । ऐसे दिव्य पुरुष जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के एकमात्र मित्र होने का सम्मान मिला हो, ऐसे महान व्यक्तित्व के वंशज भी इसी अहंकार कर्क-प्रवृत्ति के चलते पतनोन्मुख हुए होंगे। काश इस समाज के लोग अन्वय
छोड़कर #समन्वय के गुण अपना लेते।
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