क्या ज़रूरी है तुम्हें चाहूँ मैं
क्या ज़रूरी है तुम्हें प्यार करूँ
अब न वो वक्त ,न वो दिल न जुनूँ
अब न वो जोश न आलम के कहूँ
प्यार तुमसे है किधर जाऊं मैं
यार लाज़िम है तुम्हें चाहूँ मैँ
एक अरसे से जुदा हैं हम तुम
बाद उसके भी जिये जाते हैं
तेरी आँखों से पिये थे जो कभी
अब तेरे ग़म में पिये जाते हैं
अब न आवाज कोई दे मुझको
अब न पीछे से पुकारे कोई
अपने उजड़े हुए हालात से यकसां हूँ मैं
अब परिशां मेरी ज़ुल्फ़ें न सँवारे कोई
सुरेश साहनी, अदीब
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