हम ख़ुद को कहां किसकी वफाओं में तलाशें।
बेहतर है बुजुर्गों की दुआओं में तलाशें।।
मग़रूर है कोई कोई मशरूफ अना में
तस्कीने-ज़िगर किसकी अदाओं में तलाशें।।
दुनिया के कारोबार में गुम हो गए हम ही
अब ख़ुद को कहाँ जाके खलाओं में तलाशें।।
महताब की किरनों से जली ज़ीस्त का मरहम
हम किसलिये सूरज की सुआओं में तलाशें।।
इंसान के इंसान बने रहने की ख़ातिर
हम कितने ख़ुदा इतने ख़ुदाओं में तलाशें।।
तुम छोड़ के चल दोगे किसी रोज हमें भी
तो हम भी कोई दर कहीं गांवों में तलाशें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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