दर्द  कुछ  इस तरह  छुपायेंगे।

वो मिलेगा  तो  मुस्कुरायेंगे।।

इस नुमाइश के दौर में हम भी

ज़ख्म गुलदान में सजायेंगे।।

दोस्त ही जब रक़ीब हैं अपने

और हम किस को आजमाएंगे।।

इस से बेहतर कि गुलपरस्त बनें

खार से  यारियां  निभाएंगे।।

तिनका तिनका जुटा रहे हैं हम

एक दिन घर नया बनाएंगे।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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