नयन हैं या कि मधुशाले समझ मे कुछ नहीं आता।

भ्रमित हैं तेरे मतवाले समझ मे कुछ नहीं आता।।

इधर दैरो-हरम छूटे उधर वो मयकदा छूटा

कहाँ जाएं वजू वाले समझ मे कुछ नहीं आता।।

जो शीशा बन  छलकते हैं तुम्हारे होठ ही है या

शराबों से भरे प्याले समझ मे कुछ नहीं आता।।

जो तुमने फेर ली नज़रें करेंगे याचना भंवरे

कोई डेरा कहाँ डाले समझ मे कुछ नहीं आता।।

सुरेश साहनी।।

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