सिर्फ़ दुनिया नहीं मुक़ाबिल है।

मेरे अन्दर भी एक क़ाबिल है।।

मुझको बे-जिस्म क्या करेगा वो

हाँ मगर साजिशों में शामिल है।।

नेमतें जब मिली तो खलवत में

बाईस-ए-ज़िल्लतें तो महफ़िल है।।

अब मैं शिकवे गिले नहीं करता

ये मेरी ज़िंदगी का हासिल है।। 

सुबह दैरो-हरम ही मंजिल है

शाम को मयकदा ही मंजिल है।।

तू न ऐसे नज़र झुकाया कर

सब कहेंगे क़ि तूही क़ातिल है।।

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