कोशिशन हमने बात टाली है।

क्या करें ज़ीस्त ही बवाली है।।

अब वे बेरोक टोक आते हैं

हादसों ने जगह बना ली है।।

मौत शायद जवाब भी दे दे

ज़िन्दगी फितरतन सवाली है।।

एक दो हों तो मशविरा लेते

दर्द की एक गली बसा ली है।।

इश्क़ है लाइलाज़ बीमारी

क्या बतायें कि क्या दवा ली है।। 

मौत पर बस नहीं मेरा वर्ना

आपकी कौन बात टाली है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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