जान तुम्हें भी जान लिया बस ।

दिल दे कर एहसान लिया बस।।

क्या तुम ख़त पढ़ना चाहोगे

मैंने भी इमकान लिया बस।।

तुम ख़ुद में खोए खोये थे

इस दिल ने पहचान लिया बस।।

तुम कैसे हो ये तुम जानो

मैंने अपना मान लिया बस।।

राह कठिन है प्रेम नगर की

मैंने था आसान लिया बस।।

उस बुत की लज़्ज़त तो देखो

इक मेरा ईमान लिया बस।।

तुम मेरा सब कुछ ले बैठे

मैंने इक उनवान लिया बस।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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