जितना संसार  समझ आया । 

जीवन दिन चार समझ आया।।


जब  उम्र हमारी  गुज़र गयी

तब आकर प्यार समझ आया।।


उस ना में  था इक़रार छुपा

अब जाकर यार समझ आया।।


जब कर ली दुनिया मुट्ठी में

तब जग विस्तार समझ आया।।


घर आँगन अपना बँटने पर

उठना दीवार समझ आया।।


सुख में तो दुनिया अपनी थी

दुख में परिवार समझ आया।।


वो हम में है और बाहर भी

कब पारावर समझ आया।।


उस निराकार को क्या समझे

कब वह साकार समझ आया।।


है प्रेम जगत में सार मगर

क्या सचमुच सार समझ आया।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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