मेरी नई कविता को अपना आशीर्वाद दीजिये।
अब तुम्हारे बिन उमर कटती नहीं है।
घट रहे हैं दिन उमर कटती नहीं है।।
यूँ न झिझको यूँ न शर्माती फिरो
यूँ भी मरना है तो उल्फ़त में मरो
अब भी है मुमकिन उमर कटती नहीं है।।
चाहती हो तुम कहो या ना कहो
दर्द है कोई तो हमसे भी कहो
एक साथी बिन उमर कटती नहीं है।।
सत्य से कब तक कटोगी बावरी
ओढ़नी होगी तुम्हे भी चूनरी
एक न एक दिन उमर कटती नहीं है।।
दिल धड़कता है तुम्हारे वास्ते
किसलिए अपने अलग हों रास्ते
तारकों को गिन उमर कटती नहीं है।।
इस जनम में हम अगर न मिल सकेंगे
दस जनम तक हम बने फिरते रहेगे
नाग या नागिन उमर कटती नहीं है।।
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