दूर रहकर जो मुस्कुराते हो।

इस तरह से भी तुम सताते हो।।


बेनक़ाब यकबयक न हो जाओ

क्यों मेरा ताब आज़माते हो।।


 ये बिगड़ने पे बन न पाएगी

तुम जो रह रह मुझे बनाते हो।।


उठ गए तो नज़र न आएंगे

यूँ जो महफ़िल से तुम उठाते हो।।


दिल तुम्हारा ही आशियाना है

जिसपे तुम बिजलियां गिराते हो।।


हिर्सो-ग़म अपने मुझको दे जाना

तुम कहाँ कुछ सम्हाल पाते हो।।


कुछ तो सच बोलने की ताब रखो

ख़ुद को यदि आइना बताते हो।।


जब कि मुकरे हो मेरा दिल लेकर

क्यों मेरी जान ले के जाते हो।।


गुनगुनाता नहीं अदीब मगर

तुम ही होंठों पे होठ लाते हो।।


सुरेश साहनी, अदीब

कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है