दौर है या फैशन है

अतीत को खंगालने का।

उजली स्मृतियों पर 

कीचड़ उछालने का।।


मानसिक विकारों में 

रंजना समाई है

कुंठाओं में किंचित

व्यंजना समाई है


कुछ खुल के लिखने का

परदा कुछ डालने का।।


छपने को बिकने को

मैटर भी चहिए

नाम के चमकने को

ग्लैमर भी चहिए


पेज तीन पर हॉट

गॉसिप निकालने का।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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