कितने ढके पुते चेहरे हैं 

अन्दर कुछ है बाहर कुछ।

भावों पर छल के पहरे हैं

अन्दर कुछ है बाहर कुछ।।


ऊपर से ये धवल वसन हैं

अंदर से ये काले मन हैं

कृत्य कपट जायज़ ठहराते

कह नवयुग के यही चलन हैं


हर चेहरे में दस चेहरे हैं

अंदर कुछ है बाहर कुछ।।


क्या कहकर हैं आते  चेहरे

मन में घर कर जाते चेहरे

फिर अपनों को अपने घर से

बेघर हैं करवाते चेहरे


ये वो ही भोले चेहरे हैं

अंदर कुछ है बाहर कुछ।।

 


सुरेश साहनी,कानपुर

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