अमर क़िरदार होना चाहता है।

वो रूसी ज़ार  होना चाहता है।।

हमारे मुल्क़ की हालत न पूछो

कोई यलगार होना चाहता है।।

कोई  है चाहता खुद को छिपाना

कोई अखबार होना चाहता है।।

अगर सचमुच कोई दरवेश है वो

तो क्यों सरकार होना चाहता है।।

उसे जम्हूरियत से चिढ़ है शायद

वो ख़ुद मुख़्तार होना चाहता है।।

इधर अकुता गया है आशिक़ी से 

ये दिल दरबार होना चाहता है।।

ज़ेह्न  की खिड़कियां खोलो तो देखो

ये घर संसार होना चाहता है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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