तुम ख़्यालों में भी आया न करो।

इस तरह आग लगाया न करो।।

आग घर राख भी कर सकती है

इस तरह छोड़ के जाया न करो।।

ख़्वाब में प्यार से मिल लेता हूँ

सो रहा हूँ तो जगाया न करो।।

दिले-खामोश सहम उठता है

ठहरे पानी को हिलाया न करो।।

नींद उड़ती है सुकूँ जाता है

याद आ आ के सताया न करो।।

साहनी सुरेश कानपुर

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