तुम्हें होगा मुहब्बत का गुमाँ पर।
हवस के हैं बहुत भूखे यहाँ पर।।
बुलाया था तुम्हें पहले भी मैंने
तुम्हारा ध्यान था अहले-ज़हां पर।।
अभी भी मैं वहीं पर मुंतज़िर हूँ
मुझे तुम छोड़ आये थे जहां पर।।
पहुँच अपनी ज़मीं वालों तलक थी
तुम्हारी बैठकें थी आसमाँ पर।।
भटक जाती हैं क़ौमें मरहलों में
नज़र रखना अमीरे-कारवाँ पर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment