देवता जब भी मुझको बताया गया।
मेरे इंसां को पत्थर बनाया गया।।
एक बुत सा तराशा गया फिर मुझे
ज़ख़्म दे दे के मरहम लगाया गया।।
फूल जैसा उठाया गया जब मुझे
मेरा क़िरदार क्योंकर गिराया गया।।
बिक गया आज आते ही बाज़ार में
मुझको बेमोल कहके था लाया गया।।
मुझको रुसवा किया गोया नमरूद था
कह के मंसूर सूली चढ़ाया गया।।
अपने जीते जी बेघर रहा मैं मगर
मेरे मरने प घर भी दिलाया गया।।
अब न ताब है न सेहरे की इतनी तलब
क्यों अदीब आज इतना सजाया गया।।
सुरेश साहनी, `अदीब"
कानपुर
9451545132
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