बसा लो घर बना लो जिंदगानी।
अधूरी क्यों रहे कोई कहानी।।
गयी बातों में क्यों उलझे हुए हो
उन्ही बीते पलों में जी रहे हो
बदल डालो हुयी चादर पुरानी।। बसा लो घर..
नियति का खेल था हम मिल न पाये
समय प्रतिकूल था हम मिल न पाये
घडी बीती हुयी अब फिर न आनी।।बसा लो घर...
अगर भटकोगे हम बेचैन होंगे
तेरे आंसू हमारे नैन होंगे
धरा पकड़े उड़ानें आसमानी।।बसा लो घर
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