यार तू कैसी बात करता है।
इश्क़ करके कोई सँवरता है।।
ज़िन्दगी दिन ब दिन गुजरती है
आदमी दिन ब दिन बिखरता है।।
चढ़ गया है निगाह में ऐसे
ज्यूँ नज़र से कोई उतरता है।।
इश्क़ कितना बड़ा है कुज़ागर
हुस्न क्यों दिन ब दिन निखरता है।।
इसके पहले कि आसमां बांटे
वो परिंदों के पर कतरता है।।
उसकी जिंदादिली को क्या कहिए
मेरी सादादिली पे मरता है।।
क्या शरीयत है कुछ शरीफों पर
कौन दूजा खुदा से डरता है।।
सुरेश साहनी कानपुर
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