इससे पहले कि कोई उज़्र उठे
आओ हम तर्के-मुहब्बत कर लें...
साथ भी कितनी घड़ी रहना है
और दो चार घड़ी की ख़ातिर
ले लें रुसवाई ज़माने भर की
सिर्फ इक दिल के सुकूँ की ख़ातिर
इस से पहले कि ज़माना बदले
आओ हम तर्के-मुहब्बत कर लें....
प्यार है भी क्या अज़ीयत के सिवा
दर्दो -ग़म ,रंजो- अलम ,अश्को- खला
हीर -राँझा हो कि लैला- मजनू
सबको फुरक़त के सिवा कुछ न मिला
इससे पहले कि यही हमको मिले
आओ हम तर्के-मुहब्बत कर लें....
क्यों ज़रूरी है मुहब्बत ही करें
काम कुछ और भी कर सकते हैं
ज़ुल्मो-गुरबत से भरी दुनिया के-
वास्ते ज़ीस्त भी कर सकते हैं
यूँ ज़माने से बग़ावत है फ़िज़ूल
आओ हम तर्के-मुहब्बत कर लें.....
सुरेशसाहनी, कानपुर
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