प्रजा से तुनकबाजियाँ चल रही हैं।

फ़क़त तन्त्र की लाठियां चल रही हैं।।


कोई दीप सिद्धू है उनका जमूरा

उसी की कलाबाजियां चल रही हैं।।


सवा गज जुबाँ पर कई मन की बातें

कि हाकिम की मनमर्जियाँ चल रही  हैं।।


वतन से मुहब्बत विरासत है अपनी

सियासत में खुदगरज़ियाँ चल रही हैं।।


दिए जाओ तुम इम्तेहां कुछ न होगा

वहाँ नाम की पर्चियाँ चल रही हैं।।


यहाँ  ज़ाम के दौर  चलते रहेंगे

वहाँ लेह में गोलियां चल रही हैं।।


वहां कौन सुनता है फरियाद सच की

जहाँ झूठी लफ़्फ़ाजियाँ चल रही हैं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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