मौसम जैसा सब बदल गया।
तुम क्या बदले रब बदल गया।।
सब स्वप्न सरीखा लगता था
जग रंग बिरंगा लगता था
सारा जग अपना लगता था
इक पल में मनसब बदल गया।।
अब लगता है क्यों प्यार किया
अपना जीवन बेकार किया
ऐसा क्या अंगीकार किया
जीवन का मतलब बदल गया।।
जो बीत गया कब आता है
जो चला गया कब लौटा है
मन अब काहे पछताता है
जो बदल गया सो बदल गया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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