हम जब प्रेम कहानी लिखते।
बेशक़ तुमको रानी लिखते।।
कुछ बातें अनजानी होतीं
कुछ जानी पहचानी लिखते।।
हाँ दाने को दाना लिखते
फिर पानी को पानी लिखते।।
पर जब बात तुम्हारी आती
हम तुमको लासानी लिखते।।
बेशक़ दीवाने हम ही थे
पर तुमको दीवानी लिखते।।
मन अपना फागुन हो जाता
रंग तुम्हारा धानी लिखते।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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