किसने बोला है ये कि चाह मुझे।

रस्म की हद में तो निबाह मुझे।।

दुश्मनों की न कर पज़ीराई

फिर है तस्लीम मत सराह मुझे।।

ज़िन्दगी  नर्क है जो तेरे  बिन

आ के करने दे इक गुनाह मुझे।।

रख ले अपने लिए हसीं महफ़िल 

सौंप दे मेरी खानकाह मुझे।।

तेरा आशिक़ हूँ तुझको हक़ भी है

अपने हाथों से कर तबाह मुझे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है