और कितने पल जिएंगे।

गर नहीं हर पल जिएंगे।।


कोठरी कितनी पुरानी

साँस आनी और जानी

जीर्ण होती देहरी में

क्या लगा सांकल जिएंगे।।


देह यायावर सरीखी

प्राण भी बेचैन पाखी

आस सूखे तरुवरों पर

किसलिए निष्फल जिएंगे।।


रक्तबीजी कामनायें

नित्य खण्डित साधनायें

मृत्यु दावानल कहाँ तक

सूखते जंगल जिएंगे।।

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