घर को बंटता देख रही है।
खुद को घटता देख रही है।।
जिस को सींचा था अम्मा ने
वह वट कटता देख रही है।।
आहत माँ कर्तव्य मार्ग से
सुत को हटता देख रही है।।
आज अमृता वंश बेल को
जैसे छंटता देख रही है।।
बाबू की सुनी आंखों में
कुछ तो मिटता देख रही है।।
घर को घर जैसा रहने का
स्वप्न टूटता देख रही है।।
SS
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