लोग कहते हैं तो कहने दीजिये।
ख़ुद को अपनी रौ में रहने दीजिए।।
काल है निर्बाध सरिता की तरह
हाँ समय को स्वतः बहने दीजिये।।
औपचारिकताओं में मत बांधिये
काल इनसे मुक्त रहने दीजिये।।
हर शिकायत वक़्त की दरकार है
पर समय को ही उलहने दीजिये।।
आत्मा वैसे भी कालातीत है
देह ढहती है तो ढहने दीजिये।।
तप के कुंदन ही बनेंगे एक दिन
दह रही है जीस्त दहने दीजिये।।
एकपक्षीय प्रेम का क्या लाभ है
कुछ उन्हें भी पीर सहने दीजिये।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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