जब भी लेकर कोई सवाल  गया।

मुंह चुरा कर जवाब टाल गया।।


क्या नये साल में बना लोगे

सब तो लेकर ये एक साल गया।।


खाक़  खाओगे क्या बिछाओगे

धान हड़पा लिये पुआल गया।।


और इस देश के नहीं हैं हम

इतनी तोहमत भी सर पे डाल गया।।


खेत ले कर गया ये क्या कम है

साथ हल बैल औ कुदाल गया।।


जब तलक ज़िन्दगी है आफ़त है

ये गयी सोच लो बवाल गया।।


क्या गज़ब है मेरा मसीहा भी

लेके हड्डी के साथ खाल गया।। 


सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है